Sunday, Dec 7, 2025
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कामयाबी हो या नाकामी, हमेशा समर्थकों के ‘नेता जी’ रहे मुलायम

लखनऊ: दशकों तक राजनीतिक दांव-पेंच के पुरोधा और विपक्ष की सियासत की धुरी रहे समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक ‘धरती पुत्र’ मुलायम सिंह यादव ने अपने सियासी ‘अखाड़े’ उत्तर प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर तक कीर्ति हासिल की। कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए। सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाले 82 वर्षीय यादव अपने समर्थकों के बीच हमेशा ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर रहे। बीमार होने के बावजूद वह कभी सियासी फलक से ओझल नहीं हुए।

राम मंदिर आंदोलन के चरम पर पहुंचने के दौरान वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले यादव को देश के हिंदी हृदय स्थल में हिंदुत्ववादी राजनीति के उभार के बीच धर्मनिरपेक्षतापूर्ण सियासत के केंद्र बिंदु के तौर पर देखा गया।

संघर्षशील और जुझारू नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले यादव के बारे में उनके समर्थक अक्सर कहते थे कि ‘‘नेताजी संसद में होते हैं या सड़क पर।’’

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान परिवार में 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव ने राज्य का सबसे प्रमुख सियासी कुनबा भी बनाया।

यादव 10 बार विधायक रहे और सात बार सांसद भी चुने गए। वह तीन बार (वर्ष 1989-91,1993-95 और 2003-2007) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे। एक समय उन्हें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा गया था।

यादव दशकों तक राष्ट्रीय नेता रहे लेकिन उत्तर प्रदेश ही ज्यादातर उनका राजनीतिक अखाड़ा रहा। समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर सियासी सफर शुरू करने वाले यादव ने उत्तर प्रदेश में ही अपनी राजनीति निखारी और तीन बार प्रदेश के सत्ता शिखर तक पहुंचे।

वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद भी मुलायम सिंह यादव पार्टी समर्थकों के लिए नेताजी बने रहे और मंच पर उनकी मौजूदगी समाजवादी कुनबे को जोड़े रखने की उम्मीद बंधाती थी।

मौकों का उपयोग करने वाले समाजवादी नेता

समाजवादी मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक संभावनाओं को हमेशा खोलकर रखा और वह हर अवसर का इस्तेमाल करने वाले राजनेता रहे। जोड़-तोड़ की राजनीति में भी माहिर माने जाने वाले यादव समय-समय पर अनेक दलों से जुड़े रहे। इनमें राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी भी शामिल हैं। उसके बाद वर्ष 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया।

यादव ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से भी समझौते किए। वर्ष 2019 में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में दोबारा वापसी का ‘आशीर्वाद’ देकर उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने यह बयान तब दिया जब भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का मुख्य प्रतिद्वंदी दल माना जा रहा था। उनके इस बयान से तरह-तरह की अटकलें लगाई जाने लगी थीं।

वर्ष 2014 में एक रैली में दिए गए उनके बयान को लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी जिसमें उन्होंने बलात्कार के दोषियों को फांसी दिए जाने के प्रावधान की आलोचना पर कहा था कि ‘‘लड़कों से गलती हो जाती है।’’

शुरुआती जीवन

शुरुआती दिनों में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे यादव ने राजनीति शास्त्र में डिग्री हासिल करने के बाद एक इंटर कॉलेज में कुछ समय के लिए शिक्षण कार्य भी किया। वह वर्ष 1967 में पहली बार जसवंत नगर सीट से विधायक चुने गए। अगले चुनाव में वह फिर इसी सीट से विधायक चुने गए।

बेहद जुझारू नेता माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किए जाने का कड़ा विरोध किया और अन्य विरोधी नेताओं की तरह जेल भी गए। वर्ष 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद वह लोकदल की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने।

सियासत की नब्ज जानने की बेमिसाल योग्यता रखने वाले यादव वर्ष 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुने गए और और इस दौरान वह वर्ष 1985 तक उच्च सदन में विपक्ष के नेता भी रहे। वह वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसी दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी और देश प्रदेश की राजनीति इस मुद्दे पर केंद्रित हो गई।

अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लग गया और उग्र कारसेवकों से बाबरी मस्जिद को ‘बचाने’ के लिए 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना के बाद प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भारतीय जनता पार्टी तथा अन्य हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर आ गए और उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा गया।

मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया। बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर कड़ी कार्रवाई के बाद मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ गया, जिससे पार्टी के लिए ‘मुस्लिम-यादव’ का चुनाव जिताऊ समीकरण उभरकर सामने आया। इससे समाजवादी पार्टी राजनीतिक रूप से बेहद मजबूत हो गई। उत्तर प्रदेश की सियासत के पहलवान बनकर उभरे मुलायम सिंह यादव ने उसके बाद एक लंबे अरसे तक भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों को प्रदेश में मजबूत नहीं होने दिया।

नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव बहुजन समाज पार्टी के समर्थन से एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन बाद में समर्थन वापस होने से उनकी सरकार गिर गई। उसके बाद यादव ने राष्ट्रीय राजनीति का रुख किया और 1996 में मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीते। विपक्षी दलों द्वारा कांग्रेस का गैर भाजपाई विकल्प तैयार करने की कोशिशों के दौरान मुलायम कुछ वक्त के लिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी नजर आए। हालांकि वह एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए। रूस के साथ सुखोई लड़ाकू विमान का सौदा भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था।

बाद में मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति का रुख किया और वर्ष 2003 में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनने पर वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे।

वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला। उस वक्त भी मुलायम सिंह यादव के ही मुख्यमंत्री बनने की पूरी संभावना थी लेकिन उन्होंने अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को यह जिम्मेदारी सौंपी और अखिलेश 38 वर्ष की उम्र में प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने।

जीवन का अंतिम पड़ाव

हालांकि वर्ष 2016 में यादव परिवार में बिखराव शुरू हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई और एक जनवरी 2017 को पार्टी के आपात राष्ट्रीय अधिवेशन में यादव के स्थान पर उनके बेटे अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बना दिया गया। हालांकि यादव को पार्टी का ‘सर्वोच्च रहनुमा’ (संरक्षक) बनाया गया। बहरहाल, पार्टी में वाजिब ‘सम्मान’ नहीं मिलने पर शिवपाल ने वर्ष 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपना अलग दल बना लिया। हालांकि मुलायम इस दौरान अपने कुनबे को एकजुट करने की भरपूर कोशिश करते रहे मगर इस बार उन्हें लगभग मायूसी ही हाथ लगी।

हालांकि इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश और शिवपाल यादव एक बार फिर साथ आए। इसका श्रेय भी मुलायम सिंह यादव को ही दिया गया। हालांकि चुनाव में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली जिसके बाद शिवपाल और अखिलेश के रास्ते एक बार फिर अलग-अलग हो गए।

जिंदगी के आखिरी दिनों में मुलायम सिंह यादव स्वास्थ संबंधी कई समस्याओं से घिर गए और 10 अक्टूबर 2022 को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। मुलायम जब तक जिंदा रहे सपा कार्यकर्ताओं के लिए नेताजी ही रहे।

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